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मधुरालय सुरभित आसव मधुरालय का 7

*मधुरालय*
              *सुरभित आसव मधुरालय का*7
अन्न-फूल-फल बदन सँवारें,
रक्त-तत्त्व  संचार  करें।
रचे रक्त इस तन की पुस्तिका-
यह अक्षर-रोशनाई  है।।
     अक्षर बिना न पुस्तक सार्थक,
      रक्त बिना तन व्यर्थ  रहे।
      रक्ताक्षर का मेल  निराला-
      पुस्तक-जतन बधाई  है।।
यह पुनीत मधुरालय-आसव,
मन स्थिर,तन स्वस्थ  रखे।
आसव औषधि है अमोघ इक-
करता रोग  छँटाई  है।।
        दान अभय का मिला सुरों को,
         पीकर ही अमृत -हाला।
         अमर हो गए सभी  देवता-
         माया नहीं  फँसाई  है।।
हाला कहो,कहो  या  आसव,
दोनों  मधुरालय -वासी।
दोनों की  है  जाति  एकही-
यह  सुर-पान  कहाई  है।।
      कह लो इसको अमृत या फिर,
      कहो सोमरस  भी  इसको।
      देव-पेय यह  देत  अमरता-
       लगती  नहीं  पराई  है।।
ताल-मेल सुर-नर में रखती,
अपन-पराया  भेद  मिटा।
दिया स्वाद जो सुर-देवों को-
नर को स्वाद  दिलाई  है।।
      जग-कल्याण ध्येय है इसका,
      करे मगन मन जन-जन का।
      तन-मन  मात्र  निदान यही है-
      रखे नहीं  रुसुवाई  है।।
कहते तन जब स्वस्थ रहे तो,
मन भी स्वस्थ अवश्य  रहे।
तन-मन  दोनों  स्वस्थ रखे यह-
हाला  जगत  सुहाई  है।।
      जब भी तन को थकन लगे यदि,
      मन भी  ढुल-मुल  हो  जाए।
      पर आसव  का  सेवन  करते-
       मिटती शीघ्र  थकाई  है।।
लोक साध  परलोक साधना,
सेतु  यही  बस  आसव  है।
साधन यह है पार देश का-
करता सफल  चढ़ाई  है।।
       मिटा के दूरी सब शीघ्र ही,
       मेल कराता  अद्भुत  यह।
       मिलन आत्मन परमातम सँग-
       कभी न  देर  लगाई  है।।
एक घूँट  जब करे गला तर,
अंतरचक्षु- कपाट  खुले।
भोग विरत मन रमे योग में-
भागे भव-चपलाई  है।।
       सकल ब्रह्म-ब्रह्मांड दीखता,
        करते आसव-पान तुरत।
       विषय-भोग तज मन  है रमता-
       जिससे  नेह  लगाई  है।।
                    ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372

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7 Comments

Mohammed urooj khan

24-Jan-2024 02:01 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन

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Khushbu

23-Jan-2024 11:13 PM

Nice one

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